बुधवार, 31 मार्च 2010
"ब्लॉग जगत की महापंचायत" आप सभी अपनी स्वतंत्र राय देने के लिये आमंत्रित है
एक जबरदस्त बहस "आरक्षण एक वरदान या एक कमजोरी ?
आज की बहस में भाग लेने वाले सदस्य
सरपंच:- ब्लॉग जगत
संयोजक :- संजीव
मनोज और परवीन - अनारक्षित वर्ग से
अशोक और सुधीर - आरक्षित वर्ग से
सुरेश और रवि - निष्पक्ष वक्ता
इस बात पे पहले भी काफी बहस हो चुकी हैं कि आरक्षण होना चाहिए या नही .
अगर होना चाहिए तो कैसा होना चाहिए ?
अगर नही होना चाहिए तो कैसा नही होना चाहिए?
किसे आरक्षण मिलना चाहिए ?
किस किस को नही मिलना चाहिए?
जितने भी लोगो से इस बारे में बात कि जाये सबके अपने अपने तर्क - कुतर्क सामने आ जायेंगे .
इस बात को समझने के लिये हमने एक चर्चा का सहारा लिया.
और हम जा पहुंचे एक ऐसी मित्र मण्डली में जिसमे पांच-छः लोग उपस्थित थे .
सभी अपने अपने क्षेत्र के अच्छे जानकार थे और जो नही थे वो अपने जीवन में अच्छे अनुभवी थे .
बात चलते चलते पहुँच गयी आरक्षण पे .
साथ में बैठे हुए एक बंधू जिनका नाम मनोज था, ने बात शुरु की
मनोज: - आरक्षण ने तो देश का बेडा गर्ग कर दिया. इस तंत्र को जल्दी बंद नही किया गया तो देश का नाश हो जायेगा
इस बात पे अशोक को काफी गुस्सा आया (अशोक एक ऐसे परिवार से था जो आरक्षण का फायदा उठा रहा था )और उसने साथ ही बात जोड़ी.
अशोक: - इसमें गलत क्या हैं . अगर ये ना हो तो हम जैसो को जिसके पास कुछ भी नही हैं को कौन पूछने वाला हैं यहाँ.
तुम्हे क्यों जलन हो रही हैं ये सब बातें देखकर .
और इस बीच सुरेश ने उन दोनों को समझाया कि ऐसे लड़ो मत . निष्पक्ष होकर इस पे बात करते हैं.
सुरेश:(निष्पक्ष वक्ता )- मनोज और अशोक तुम दोनों अपनी अपनी जगह ठीक हो. अशोक तुम्हारी योग्यता सिर्फ दसवी हैं और तुम्हे भारतीय रेलवे में क्लर्क कि सरकारी नौकरी मिल गयी जबकि मनोज स्नातक हैं और उसे आज तक नौकरी नही मिल पाई यदपि उसके दसवी के अंक भी तुमसे काफी अच्छे हैं. और तुमसे जयादा योग्यता भी रखता हैं .
क्या तुम्हे नही लगता के ये उसके साथ अन्याय हैं.
ये बात सुनकर तो जैसे सभी में जान आ गई और सभी- अपने अपने विचार रखने लगे .
परवीन :- तुम ठीक कहते हो सुरेश. हमारा कसूर सिर्फ इतना हैं कि हम अनारक्षित वर्ग में आते हैं .
हमारे तो 90 % अंक भी हमें नौकरी नही दिला पाते और ये आरक्षण वाले 40-50% में ही सरकारी नौकरियों का मजा लूटते हैं . ये हमारे साथ बिलकुल अन्याय हैं.
रवि: - मै आप दोनों से पूरी तरह से सहमत हूँ . लेकिन एक बात सोचने कि हैं कि आखिर किसको इस आरक्षण से फायदा हो रहा हैं और किसको होना चाहिए?
परवीन:- ये बात तो ठीक हैं कि आरक्षण से कई परिवारों को फायदा मिला हैं जो इस वर्ग में आते हैं . और कुछ ऐसे भी हैं जो अल्प संख्यक के तौर पे भी इसका फायदा उठा रहे हैं. कोई परिवार तो ऐसा भी हैं जिनके घर मै अगर पांच लोग भी हैं तो सारे के सारे सरकारी नौकरी लगे हुए है सिर्फ इस आरक्षण के कारण ही . और कुछ ऐसे भी अनारक्षित परिवार हैं कि जिनकी कमाई का कोई जरिया नही हैं और वो इसके कारण ही अपना पेट पालने के लायक भी नही कमा पाते .
पढाई पे खर्चा हो जाता हैं काफ़ी, और फिर नौकरी नही मिलती इस कारण से कि वो अनारक्षित परिवार से हैं.
रवि:- बहुत ठीक कहा तुमने परवीन. ये बात तो सत्य हैं कि काफ़ी ऐसे परिवार हैं जो आज गरीबी कि रेखा से भी नीचे जीवन बसर कर रहे हैं और उनके परिवार को सरकार कि तरफ से भी कोई सहयोग नही मिल पाता सिर्फ इस कारण से कि वो अनारक्षित परिवार से हैं .
सुरेश:- मेरे ख्याल से आरक्षण का एक बड़ा नुकशान ये भी हैं कि आदमी काम करने लायक नही रह जाता .
जिन लोगो को इसका फायदा मिलना हैं उनके दिमाग मै सायद ये बात कही ना कही आ ही जाती हैं कि हमें इतनी मेहनत करने कि क्या जरुरत हैं ?
दूसरी तरफ देखे तो कुछ ऐसे क्षेत्र हैं जिनमे सायद कभी भी आरक्षण होना ही नहीं चाहिए. कोई मुझे बता सकता हैं कि वो कौन से क्षेत्र हैं
रवि:- जी हाँ वो हैं न्याय, मेडिकल, और विज्ञान के क्षेत्र .
अशोक :- क्यों इनमे हमारा परतिनिधित्व क्यों नही होना चाहिए.
रवि:- मैंने ये नही कहा कि इनमे होना नही चाहिए . मैंने तो केवल ये कहा हैं कि इनमे योग्यता के आधार पर होना चाहिए क्योंकि ये क्षेत्र बहुत ही जिम्मेदारी के हैं और ऐसा ना हो कि 90% वाला योग्य व्यक्ति जो देश के लिये काफी कुछ कर सकता हैं अपनी योग्यता के बूते, बाहर गलियों में सड़ता रहे और 40% वाला व्यक्ति जो पास भी अच्छे से नही हुआ हैं वो इनका मजा ले बिना किसी प्रगतिशील सोच के .
सुरेश:- मुझे तो ये लगता हैं कि आरक्षण जाति, समाज या किसी भेदभाव के ना होके आर्थिक स्तर और योग्यता के आधार पर होना चाहिए. इससे युवाओ में योग्यता को लेकर चिंता उत्त्पन होगी और वो अच्छे से अपनी योग्यता पूरी करेंगे.
बाकी क्या होना चाहिए ये हम अपने सरपंच "ब्लॉग जगत के टिप्पणीकारों " पर छोड़ते हैं .
सोमवार, 29 मार्च 2010
किसी को क्या हुआ हांसिल
ये बात सुनने में काफी अजीब लगती हैं कि किसी को क्या हुआ हांसिल?
पर ये सत्य हैं कि हजारो मुकद्दमे भारत में ऐसे हैं कि जिनको चले हुए एक अरसा बीत गया और अब हालात ऐसे हैं कि उनको अदालत में डालने वालो की दूसरी जमात आ गयी हैं लड़ने के लिये, लेकिन मुकद्दमे अभी भी वही पे ठहरे हुए हैं जहा से उनकी सुरुआत हुई थी.
भोपाल गैस त्रासदी, कनिष्क विमान केस , अयोध्या मसला(बाबरी विध्वंश ), हवाला काण्ड, रुचिका गिरहोत्रा मामला और भी न जाने कितने ही ऐसे मामले हैं जिनके वकील, जज और ना जाने कौन कौन अब तक बदल चुके हैं ..
पर अफ़सोस इस बात का हैं कि उनका नतीजा आज तक नही आया.
अब सवाल ये उठता हैं कि क्या अपना कानून इतना ढीला हैं कि ऐसे मुकद्दमो को देखने में असमर्थ हैं या कुछ और बात हैं?
अब जरा इस और भी ध्यान दीजिये कि बाबरी मस्जिद केस कि रिपोर्ट में ये बताने के लिये कि कौन कौन हैं जो इस केस में संदिग्ध हैं जस्टिस लिब्राहन आयोग ने 17 वर्ष ले लिये.
और जो रिपोर्ट संसद पटल पे रखी जानी थी वो पहले ही लीक हो गयी.
सोचिये सत्रह साल कि मेहनत नतीजे बुलने से पहले ही फ़ैल हो गयी.
चलो कोई बात नही, अब मैंने एक अखबार में पढ़ा था कि इस रिपोर्ट पर अगर कारवाही हो भी जाती हैं तो केस का रिजल्ट आने तक लगभग पंद्रह से बीस साल और लग जायेंगे.
अब जब तक इस केस का नतीजा बुलेगा सायद तब तक लगभग उन सभी लोगो की जिन्दगी के नतीजे बुल चुके होंगे जिनके नाम इस रिपोर्ट में हैं.
फिर किससे क्या छीन लोगे?
कहा जाकर उन पे न्याय प्रक्रिया लागू करोगे?
और उस समय तक तो अधिकतर लोग जो इस केस से जुड़े हुए हैं वो इस दुनिया में सिर्फ यादे बनकर रह जायेंगे.
अब रुख करते हैं दूसरी और " लड़ाई का मुद्दा था कि वहा मंदिर बने या फिर मस्जिद ?"
कोई कहता हैं कि ऐसा ना किया तो हमारा जीवन व्यर्थ हो जाएगा.
वैसा ना किया तो हम भगवान् को क्या मुह दिखायेंगे ?
इन मुद्दों में चाहे किसी को न्याय मिले या ना मिले लेकिन
एक बात तो तय हैं कि जो जनहानि और मानसिक तनाव इन सब मुद्दों से उभरता हैं अवसाद बनकर , उसका हर्जाना कोई अदालत कभी ना तो दे पायी हैं और ना ही कभी दे पाएगी.
पर ये सत्य हैं कि हजारो मुकद्दमे भारत में ऐसे हैं कि जिनको चले हुए एक अरसा बीत गया और अब हालात ऐसे हैं कि उनको अदालत में डालने वालो की दूसरी जमात आ गयी हैं लड़ने के लिये, लेकिन मुकद्दमे अभी भी वही पे ठहरे हुए हैं जहा से उनकी सुरुआत हुई थी.
भोपाल गैस त्रासदी, कनिष्क विमान केस , अयोध्या मसला(बाबरी विध्वंश ), हवाला काण्ड, रुचिका गिरहोत्रा मामला और भी न जाने कितने ही ऐसे मामले हैं जिनके वकील, जज और ना जाने कौन कौन अब तक बदल चुके हैं ..
पर अफ़सोस इस बात का हैं कि उनका नतीजा आज तक नही आया.
अब सवाल ये उठता हैं कि क्या अपना कानून इतना ढीला हैं कि ऐसे मुकद्दमो को देखने में असमर्थ हैं या कुछ और बात हैं?
अब जरा इस और भी ध्यान दीजिये कि बाबरी मस्जिद केस कि रिपोर्ट में ये बताने के लिये कि कौन कौन हैं जो इस केस में संदिग्ध हैं जस्टिस लिब्राहन आयोग ने 17 वर्ष ले लिये.
और जो रिपोर्ट संसद पटल पे रखी जानी थी वो पहले ही लीक हो गयी.
सोचिये सत्रह साल कि मेहनत नतीजे बुलने से पहले ही फ़ैल हो गयी.
चलो कोई बात नही, अब मैंने एक अखबार में पढ़ा था कि इस रिपोर्ट पर अगर कारवाही हो भी जाती हैं तो केस का रिजल्ट आने तक लगभग पंद्रह से बीस साल और लग जायेंगे.
अब जब तक इस केस का नतीजा बुलेगा सायद तब तक लगभग उन सभी लोगो की जिन्दगी के नतीजे बुल चुके होंगे जिनके नाम इस रिपोर्ट में हैं.
फिर किससे क्या छीन लोगे?
कहा जाकर उन पे न्याय प्रक्रिया लागू करोगे?
और उस समय तक तो अधिकतर लोग जो इस केस से जुड़े हुए हैं वो इस दुनिया में सिर्फ यादे बनकर रह जायेंगे.
अब रुख करते हैं दूसरी और " लड़ाई का मुद्दा था कि वहा मंदिर बने या फिर मस्जिद ?"
कोई कहता हैं कि ऐसा ना किया तो हमारा जीवन व्यर्थ हो जाएगा.
वैसा ना किया तो हम भगवान् को क्या मुह दिखायेंगे ?
इन मुद्दों में चाहे किसी को न्याय मिले या ना मिले लेकिन
एक बात तो तय हैं कि जो जनहानि और मानसिक तनाव इन सब मुद्दों से उभरता हैं अवसाद बनकर , उसका हर्जाना कोई अदालत कभी ना तो दे पायी हैं और ना ही कभी दे पाएगी.
गुरुवार, 25 मार्च 2010
अगर आप अपना दिमाग खराब नही करना चाहते तो इसे ना पढ़े.
अब आप तैयार हो जाइए कुच्छ ऐसा पढने के लिये जिसको पढने के बाद मेरा दिमाग ख़राब हो गया हैं
और अब मै आप सब का दिमाग खराब कर दूंगा.
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