ये बात सुनने में काफी अजीब लगती हैं कि किसी को क्या हुआ हांसिल?
पर ये सत्य हैं कि हजारो मुकद्दमे भारत में ऐसे हैं कि जिनको चले हुए एक अरसा बीत गया और अब हालात ऐसे हैं कि उनको अदालत में डालने वालो की दूसरी जमात आ गयी हैं लड़ने के लिये, लेकिन मुकद्दमे अभी भी वही पे ठहरे हुए हैं जहा से उनकी सुरुआत हुई थी.
भोपाल गैस त्रासदी, कनिष्क विमान केस , अयोध्या मसला(बाबरी विध्वंश ), हवाला काण्ड, रुचिका गिरहोत्रा मामला और भी न जाने कितने ही ऐसे मामले हैं जिनके वकील, जज और ना जाने कौन कौन अब तक बदल चुके हैं ..
पर अफ़सोस इस बात का हैं कि उनका नतीजा आज तक नही आया.
अब सवाल ये उठता हैं कि क्या अपना कानून इतना ढीला हैं कि ऐसे मुकद्दमो को देखने में असमर्थ हैं या कुछ और बात हैं?
अब जरा इस और भी ध्यान दीजिये कि बाबरी मस्जिद केस कि रिपोर्ट में ये बताने के लिये कि कौन कौन हैं जो इस केस में संदिग्ध हैं जस्टिस लिब्राहन आयोग ने 17 वर्ष ले लिये.
और जो रिपोर्ट संसद पटल पे रखी जानी थी वो पहले ही लीक हो गयी.
सोचिये सत्रह साल कि मेहनत नतीजे बुलने से पहले ही फ़ैल हो गयी.
चलो कोई बात नही, अब मैंने एक अखबार में पढ़ा था कि इस रिपोर्ट पर अगर कारवाही हो भी जाती हैं तो केस का रिजल्ट आने तक लगभग पंद्रह से बीस साल और लग जायेंगे.
अब जब तक इस केस का नतीजा बुलेगा सायद तब तक लगभग उन सभी लोगो की जिन्दगी के नतीजे बुल चुके होंगे जिनके नाम इस रिपोर्ट में हैं.
फिर किससे क्या छीन लोगे?
कहा जाकर उन पे न्याय प्रक्रिया लागू करोगे?
और उस समय तक तो अधिकतर लोग जो इस केस से जुड़े हुए हैं वो इस दुनिया में सिर्फ यादे बनकर रह जायेंगे.
अब रुख करते हैं दूसरी और " लड़ाई का मुद्दा था कि वहा मंदिर बने या फिर मस्जिद ?"
कोई कहता हैं कि ऐसा ना किया तो हमारा जीवन व्यर्थ हो जाएगा.
वैसा ना किया तो हम भगवान् को क्या मुह दिखायेंगे ?
इन मुद्दों में चाहे किसी को न्याय मिले या ना मिले लेकिन
एक बात तो तय हैं कि जो जनहानि और मानसिक तनाव इन सब मुद्दों से उभरता हैं अवसाद बनकर , उसका हर्जाना कोई अदालत कभी ना तो दे पायी हैं और ना ही कभी दे पाएगी.
सोमवार, 29 मार्च 2010
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एकदम सटीक बात, ये अदालतें भी कुछ लोगो की जागीर बनकर रह गई !
जवाब देंहटाएं"अब जब तक इस केस का नतीजा बुलेगा सायद तब तक लगभग उन सभी लोगो की जिन्दगी के नतीजे बुल चुके होंगे जिनके नाम इस रिपोर्ट में हैं."
जवाब देंहटाएंab or kya kahe..?